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सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के तत्कालीन अध्यक्ष निर्मल महतो की हत्या के मामले में सजायाफ्ता नरेंद्र सिंह उर्फ पंडित की दायर की गई अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए झारखंड के मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने उन्हें अगली सुनवाई में उपस्थित होने का आदेश दिया है। इस याचिका में नरेंद्र सिंह ने आरोप लगाया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद उसे जेल से रिहा नहीं किया गया है, जबकि कोर्ट ने उसे रिमिशन के आधार पर दो महीने के भीतर रिहा करने का निर्देश दिया था।

1987 का निर्मल महतो हत्याकांड

8 अगस्त, 1987 को झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष निर्मल महतो की हत्या जमशेदपुर के चमरिया (टाटा स्टील) गेस्ट हाउस के पास गोली मारकर कर दी गई थी। इस घटना के वक्त झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता सूरज मंडल भी मौके पर मौजूद थे, जिनकी सूचना पर बिष्टुपुर थाने में केस दर्ज किया गया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए, 18 नवंबर 1987 को इसकी जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंप दी गई।

करीब 13 साल बाद, इस मामले में वीरेंद्र सिंह को गिरफ्तार किया गया और 15 साल बाद 2003 में नरेंद्र सिंह उर्फ पंडित को भी गिरफ्तार किया गया। इन दोनों पर आरोप था कि उन्होंने निर्मल महतो की हत्या की योजना बनाई थी और उसे अंजाम दिया था। निचली अदालत ने 2003 में दोनों को दोषी मानते हुए उन्हें उम्रभर की सजा सुनाई।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश और अवमानना याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2023 में अपने फैसले में यह निर्णय लिया था कि नरेंद्र सिंह उर्फ पंडित को रिमिशन के आधार पर दो महीने के भीतर जेल से रिहा किया जाए, क्योंकि वह 20 साल से अधिक समय से जेल में बंद था। हालांकि, इस आदेश के डेढ़ साल बाद भी नरेंद्र सिंह को रिहा नहीं किया गया, जिससे वह अदालत में अवमानना याचिका लेकर पहुंचा।

नरेंद्र सिंह ने अपनी याचिका में यह आरोप लगाया कि झारखंड राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया है, और वह अब तक जेल में बंद है। उसने सुप्रीम कोर्ट से इस आदेश का पालन करवाने की मांग की है, ताकि उसे रिहा किया जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए झारखंड के मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया और उन्हें अगली सुनवाई पर अदालत में उपस्थित होने का निर्देश दिया।

अदालत के आदेश की अनदेखी

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद राज्य सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं, जिसके कारण सजायाफ्ता नरेंद्र सिंह उर्फ पंडित अब तक जेल में बंद है। कोर्ट ने इस मामले में झारखंड राज्य सरकार के अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया है और उनसे इस आदेश के अनुपालन की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी है।

निर्मल महतो की हत्या और न्याय की प्रक्रिया

निर्मल महतो की हत्या एक संवेदनशील मामला है, जो झारखंड राज्य और झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए ऐतिहासिक महत्व रखता है। महतो की हत्या के बाद से ही इस मामले को लेकर राजनीतिक हलकों में गहरी नाराजगी और प्रतिक्रियाएं देखने को मिली थीं। कई सालों की लंबी कानूनी प्रक्रिया और अभियुक्तों की सजा के बाद, झारखंड हाईकोर्ट ने फरवरी 2017 में उनकी उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा था।

इस मामले में अब तक कई पहलुओं पर विचार-विमर्श किया जा चुका है और कई बार न्यायिक आदेशों के बावजूद अभियुक्तों की सजा पर विवाद उठ चुके हैं। अब नरेंद्र सिंह की अवमानना याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि न्यायालय इस मामले में अपने आदेशों का पालन कराने के लिए गंभीर है।

निर्मल महतो की हत्या का मामला न केवल एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम है, बल्कि यह न्यायिक प्रक्रिया और सरकार की जवाबदेही पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है। सुप्रीम कोर्ट का हालिया आदेश और झारखंड राज्य सरकार के अधिकारियों के खिलाफ उठाए गए कदम यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि न्याय का सही तरीके से पालन हो। आने वाले समय में इस मामले में अदालत का निर्णय महत्वपूर्ण होगा, जो न केवल अभियुक्तों के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि राज्य सरकार की कानूनी जवाबदेही को भी स्पष्ट करेगा।

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